कभी आड़ी-टेढ़ी तो कभी
मन मर्ज़ी से, सीधी मांग निकाले,
मस्ती में मुक्त, झूमते, उड़ते कुँवारे
धुले-धुले औ’ खुले-खुले बाल।

फिर नियत की गई जगह पर सटीक-स्थिर मांग के रूप में
दो भागों में बंट जाते हैं।

और उनकी पसंद की चोटी या मुट्ठी भर
जूड़े में सिमट कर रह जाते हैं।

।।मुक्ता शर्मा त्रिपाठी।।

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